Short Story In Hindi - हिन्दी प्रेरणादायक कहानियाँ - एक नादानी....अल्हड़पन की!

 

Short Story In Hindi

हिन्दी प्रेरणादायक कहानियाँ 


नमस्कार दोस्तों, Malakar Blog में आपका स्वागत हैं।

दोस्तों आज हम आपके लिए ले कर आए हैं एक लेखिका के द्वार लिखी गई अपनी पुरानी यादों में से एक किस्सा जिसे उन्होंने एक छोटी सी कहानी के रुप में बताया हैं।

यह छोटी सी कहानी आज हम आपके साथ शेयर कर रहे हैं। उम्मीद करता हूं कि आपको यह कहानी पसंद आएगी।


Short Story In Hindi - हिन्दी प्रेरणादायक कहानियाँ - एक नादानी....अल्हड़पन की!


एक नादानी....अल्हड़पन की!

लेखिका के कलम से:- 

यह बात उन दिनों की है, जब मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन करने के पश्चात फैशन डिजाइनिंग के लिए इलाहाबाद पॉलिटेक्निक से डिप्लोमा कर रही थी। इधर मेरा डिप्लोमा का फाइनल ईयर चल रहा था और उधर शादी की बात भी चल रही थी। उस जमाने में पढ़ाई लिखाई खत्म होते ही शादी कर दी जाती थी। 


मेरे लिए दो रिश्ते आए थे, पहला रिश्ता जो आया वो बनारस से था और दूसरा रिश्ता लखनऊ से।बस इससे ज्यादा जद्दोजहद नही करनी पड़ी मां पापा को।



अब आते है पहले रिश्ते की तरफ जो मेरी जिंदगी का ऐसा सच है जो आप के लिए शायद कहानी होगा, लेकिन मेरे लिए ये हकीकत है। जिसे मैं चाह कर भी अब तक भुला नहीं पाई हूँ।

ये वाकया 1992 के समय का है। आपको भी याद होगा उस समय बहुत सी ऐसी मूवी आई थी जिसमे अधिकतर हीरो का नाम प्रेम हुआ करता था। तो हुआ यूं कि प्रेम नाम मुझे बहुत अच्छा लगता था,जहन में ये एक इच्छा थी कि शादी करू तो लड़के का नाम प्रेम हो और देखने में वैसे ही हीरो जैसे हो अगर नाम नही भी हुआ तो बाद में प्यार से प्रेम बुलाएंगे क्या फर्क पड़ता है। 


बस दिखना हीरो जैसा ही चाहिए। संयोग से ये बनारस का रिश्ता जो आया था उसमे लड़के का नाम प्रेम ही था। फोटो वगैरा ही हम लोगो के टाइम में देखा जाता था, लड़कियों को तो वो भी नहीं दिखाया जाता था। बाकी बात फाइनल होने के बाद ही सगाई वगैरा में लड़की लड़के आपस में एक दूसरे को देख सकते थे।


मगर मैं भी कुछ कम नही थी, मुझे शादी से पहले ही देखना था, कि लड़का कैसा दिखता हैंकैसा उसका रंग रूप है कैसे चलता है, वगैरा वगैरा....।  फिर क्या था उसे देखना था तो था कैसे भी हो। 


मेरी ५ सहेलियों का ग्रुप था, जो पंच तत्वों के नाम से फेमस थे। हम सहेलियों ने आपस में मिल कर प्लान बनाया। उस टाइम मोबाइल वगैरा तो था नही लैंडलाइन फोन से उसके घर सहेलियों ने फोन किया, दो तीन बार में सफलता मिली यानी तीसरी बार में लड़के ने फोन उठाया तो ये सब बोली हम आपसे नेक्स्ट ट्यूजडे को मिलना चाहते है, मेरी सहेली आपको यूनिवर्सिटी में ही मिलेगी और आपको वहीं आना है और वो भी ब्लू शर्ट ही पहन कर, कोई और कलर का नही...डीन ऑफिस के बाहर १:३० पर हम मिलेंगे। 


वो पूछता ही रहा। क्यों....ऐसा क्यूं जरूरी है....मगर ये सब उसकी एक ना सुनी और इतना कह कर फोन रख दिया कि जैसे बताया है वैसे आना समय का ख्याल रखना। क्योंकि हमारे समय में कॉलेज से घर और घर से कॉलेज, बस इसके बाहर कभी हम गए नही और हिम्मत भी नहीं थी ऐसे किसी अनजान के साथ बाहर मिलने की। खैर मिलने का दिन समय सब तय हो जाने के बाद फाइनली वो दिन आ गया। 



करीब १:३० बजे मैंने दूर से ही देखा कोई शख्स डीन ऑफिस के बाहर ब्लू शर्ट में कोई सांवला सा लड़का खड़ा है। मेरी हिम्मत नही हुई पास जाने की, बात करना तो दूर की बात है। मेरे मन मस्तिष्क में उस अल्हड़पन वाले ख्यालों में वो हीरो वाली कद काठी की इमेज बैठी हुई थी और उसकी कद तो ठीक ठाक था लेकिन सांवला सा और पता नही क्यों पहली नजर में वो मुझे अच्छा नही लगा।


मैं वहां करीब २ बजे तक किसी कश्मकश में रुकी रही फिर पता नही क्या सोचा मैं चली आई क्योंकि नेक्स्ट क्लास स्टार्ट होने वाली थी। बाद में कुछ विश्वसनीय सूत्रों से पता चला वो करीब ४ बजे तक वहां रुका था। मैं घर आ गई सोचा कैसे मना करू ये रिश्ता कई दिन सोचने में निकल गए,खैर मुझे ज्यादा और कुछ नही  करना पड़ा। लखनऊ भी बात चल रही थी। कुछ महीने बाद मेरी शादी हो गई और मैं लखनऊ आ गई।


शादी के कुछ साल तो जैसे पंख लगा के उड़ गए पता ही नही चला। ऐसे लगता जैसे कल की ही बात हो। हमारे समय में शादी कराने वाले एक मिडियेटर होते थे जो दोनो पक्षों को अच्छे से जानते थे। उन्ही के माध्यम से रिश्ते तय होते थे। हमारे पापाजी के दोस्त मल्होत्रा अंकल ये काम बखूबी करते थे। आज भी मिडिएटर होते है मगर कम। 


करीब आठ, दस साल बाद मल्होत्रा अंकल ने बताया कि प्रेम ने अभी शादी नही किया है और अभी लास्ट ईयर भी पता चला कि इतने सालों बाद भी अभी तक उसने शादी नही किया। हां उसने  कई जगह कई स्कूल कॉलेज खोले है। एक तो हमारे लखनऊ में ही कॉलेज चल रहा कई एनजीओ भी चला रहे। बहुत अच्छा सब चल रहा फिर भी उसने शादी नही किया अभी। उसको मेरा लखनऊ में रहना पता है भी या नहीं मैं नहीं जानती। 


लेकिन जब मेरी शादी लखनऊ हो गई तो मैंने अपने पापा को इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में मिलने बुलाने वाली सारी घटना बता दी थी। अब तो ये बात मेरे पति और बच्चे भी जानते हैं, और आज आप लोगों से साझा कर रही हूं। मैं नही जानती उसके शादी ना करने के पीछे मै कितने प्रतिशत जिम्मेदार हूं। मैं ही जिम्मेदार हूं या कोई और वजह है। पता नही।


कभी कभी सोचती हूं आज के समय में मेरे पास कितनी सारी सुविधाएं है,अपनी मर्जी की मालिक हूं। ऑफिस के सिलसिले में बाहर और आउट ऑफ सिटी भी मेरा आना जाना लगा रहता है,कोई रोक टोक भी नहीं सबको सब बात भी पता है, फिर भी कभी मेरी हिम्मत नही होती कि मैं कोई कॉल या मैसेज करूं। बहुत सारी बाते दिमाग में चलती है, बस एक ही कशक रहती है मेरी उस बचकानी हरकतों से उसे कितनी चोट पहुंची होगी, कितनी दूर से वो मिलने आया था, कितनी देर तक बीना खाए पीए कुछ वहा से हिला नहीं ४ बजे कितना मायूस होकर कितने बुझे मन से गया होगा। 



ऐसे कितनी ही बातें मुझे अब रह रह कर याद आती है। शायद इसी वजह से उसने अब तक शादी नही की। मैने उसका भरोसा तोड़ा है। उसका दिल दुखाया है। मैं जानती हूं भगवान मुझे कभी माफ नहीं करेगा भले ही ये गलती मेरी अल्हड़पने में नादानी की वजह से हुई। कहते है ना जब आप एक उम्र बाद मेच्योर हो जाते है तो आपको अपनी पिछली गलती याद आती है, जिसमे कुछ तो शायद पश्चाताप के बाद भी नही ठीक कर सकतें।

 

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तो दोस्तों यह थी एक छोटी सी कहानी, आशा करता हूं कि आपको हमारी short story in hindi सीरीज की यह कहानी पसंद आई होगी। आप अपनी राय मुझे कमेंट के माध्यम से जरूर बताएं 

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