Bee Farming - मधुमक्खी पालन
Bee Farming कैसे करें? मधुमक्खी पालन की सम्पूर्ण जानकारी जानें हिन्दी में
Bee farming | Agriculture | मधुमक्खी पालन
नमस्कार दोस्तों, Malakar Blog में आपका स्वागत हैं।
दोस्तों आज मैं आपको मधुमक्खी पालन को लेकर कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां बताने जा रहा हूँ। जिसे पढ़ कर और सिखकर आप मधुमक्खी पालन के द्वारा अपना स्वयं का व्यवसाय शुरू कर सकते हैं।
जी हां दोस्तों, यदि आप आपने लिए एक अच्छे रोजगार की खोज में है तो यह पोस्ट को पुरा जरूर पढ़ें। क्योंकि इस पोस्ट में बताया गया है कि
मधुमक्खी पालन क्या हैं?
Bee Farming कैसे करें?
और
मधुमक्खी पालन से किस प्रकार का व्यवसाय कर सकतें हैं?
आईए जानते हैं -
Bee Farming कैसे करें? मधुमक्खी पालन की सम्पूर्ण जानकारी जानें हिन्दी में
Content -
- Bee farming मधुमक्खी पालन
- Introduction
- अवसर व संभावनाएं
- ग्रामीण क्षेत्र व कृषि के क्षेत्र में मधुमक्खी पालन की उपयोगिता
- मधुमक्खी की पाई जाने वाली प्रजातियाँ
- मधुमक्खी पालन में प्रयोग होने वाले अन्य सहायक उपकरण
- पोषण प्रबंध
- मधुमक्खी पालन के लिए स्थान निर्धारण
- मधुमक्खी पालन व मौनगृह प्रबंध
- मौन प्रबंध
- मधुमक्खी पालन में व्याधियाँ
मधुमक्खियो द्वारा शहद का उत्पादन |
Introduction -
मधुमक्खियों के द्वारा की जाने वाली तरह - तरह की गतिविधियों की सारी जानकारी को प्राप्त कर के एवं लकड़ी की बनी पेटी (एक विशेष प्रकार के मौनगृह) में उन्हें पाल कर शहद व मोम प्राप्त करने की प्रक्रिया को ही मधुमक्खी पालन कहते है। यह एक तकनीकी प्रक्रिया है।
मधुमक्खी पालन व व्यवसाय प्राचीन सभ्यताओं के काल से ही चलन में रहा है, परंतु वह वर्तमान समय से थोड़ा अलग था। सर्वप्रथम 1815 ई. में लाना ड्रप नामक अमेरिकन वैज्ञानिक ने कृत्रिम छत्तों का अविष्कार किया। भारत में मधुमक्खी पालन ट्रावनकोर में 1917 ई. में एवं कर्नाटक में 1925 ई. में शुरू हुई थी। कृषि पर रॉयर कमीशन की सिफारिशों के बाद 1930 ई. से कुटीर उद्योगों के रूप में राज्य स्तर पर इसका विस्तार हो पाया था। वर्ष 1953 ई. में अखिल भारतीय कहदी व ग्रामोद्योग बोर्ड की स्थापना हुई।
मधुमक्खी पालन को तकनीकी व्यवसाय का आकार देने के लिए बोर्ड ने पुणे में केन्द्रीय मौनपालन अनुसंधान केंद्र की स्थापना की। बोर्ड द्वारा इस अनुसंधान केंद्र को, भारत के राज्यों में मधुमक्खी पालन के प्रचार व प्रसार करने तथा प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने का काम दिया गया। भारत के नैनीताल जिले के ज्यूलिकोट नाम के स्थान पर मधुमक्खी पालन की वर्तमान में प्रचलित तकनीक का जन्म हुआ था।
रोजगार के क्षेत्र में अवसर व संभावनाएं
वार्षिक सकल घरेलू उत्पादन करने में भारत के प्राथमिक क्षेत्र की भागीदारी बड़ रही हैं, इस वजह से भारत कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था वाला देश बनने की ओर अग्रसर है। देश के ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त संसाधन व हर वह संभावनाएं हैं, जिनका सदुपयोग कर के आर्थिक विकास की दर को तीव्र गति दी जा सकती है।
वही दूसरी ओर बढ़ते जनसंख्या घनत्व ने देश में बेरोजगारी की समस्या भी बढ़ती जा रही है। इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि जितने भी मानव संसाधन हमारे पास उपलब्ध है, उन्हे स्वरोजगार योजना से जोड़ने का कार्य किया जाये। ग्रामीण तथा कुटीर उद्योग के अंर्तगत मधुमक्खी पालन को स्वरोजगार के क्षेत्र में अच्छे विकल्प के तौर पर विकसित किया जा सकता हैं।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार से प्रयोजित विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी उद्यमवृत्ति विकास (STAD) परियोजना, 'भारतीय उद्यमिता विकास केंद्र, अलवर' द्वारा मधुमक्खी पालन के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये गए हैं।
इन परियोजना के परिणाम स्वरूप पिछले दो वर्षों में बहुत से लोगो द्वार मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण लिया गया तथा दूर के स्थानों में TV व internet प्रदर्शित कार्यक्रमों के माध्यम से प्रशिक्षण प्राप्त कर लोग सफलतापूर्वक मधुमक्खी पालन का व्यवसाय कर रहें हैं।
Honey Bees - Malakar Blog |
मधुमक्खी पालन की शासकीय परियोजनाएं
अलवर व भरतपुर जिलों में नवम्बर माह से फरवरी माह तक सरसों की पैदावार बहुत होती है। यह समय इन जगहों में मधुमक्खी पालन के लिए सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। राज्य सरकार द्वारा आर्थिक विकास को गति देने के लिए परियोजना बनाई गई, जिससे ग्रामीण संसाधनों का पूर्ण उपयोग किया जा सके। इस परियोजना में बनाए गए शिविरों में ग्रामीणों को मधुमक्खी–पालन व्यवसाय के प्रति जागरूक किया गया।
इन परियोजना द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में द्वारा मधुमक्खी पालन के सैधांतिक प्रशिक्षण के साथ ही प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण भी किया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान परियोजना द्वारा प्रशिक्षणार्थियों को इस व्यवसाय को आरंभ करने के लिए ऋण तथा ऋण में मिलने वाले विभिन्न प्रकार के अनुदानों से संबंधित जानकारी उपलब्ध कराई जाती है। इसके अलावा इच्छुक व्यक्तियों को बाक्स खरीदने के लिए भी पर्याप्त सहायता परियोजना द्वारा उपलब्ध कराई जाती है।
मधुमक्खी पालन के प्रशिक्षण में यह आवश्यक है कि प्रशिक्षणार्थियों को इस व्यवसाय का तकनीकी जानकारियां उपलब्ध कराया जाए, जिससे उन व्यक्तियों की सभी शंकाओं का निवारण किया जा सके। इस परियोजना की कई वर्षों से यहीं कोशिश रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा से ज्यादा लोग इस व्यवसाय से जुड़ कर क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकें।
यहाँ मधुमक्खी पालन और मोन गृहप्रबंध संबंधी संक्षिप्त जानकारी प्रस्तुत की जा रही है।
ग्रामीण व कृषि क्षेत्र में मधुमक्खी पालन की उपयोगिता
- यह पूर्ण कुशलता व विशेषज्ञता के साथ व्यक्तियों को लाभदायक स्वरोजगार का अवसर प्रदान करता है।
- यह स्थानीय संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग कर लाभार्जन कराता है।
- इस व्यवसाय में अन्य उद्योगों की अपेक्षाकृत कम निवेश की आवश्यकता होती है।
- इसकी सहायता से मधु, मोम व मौनवंश में वृद्धि कर उत्पादन किया जा सकता है।
- मधुमक्खी पालन से न की सिर्फ शहद (Honey) व मोम (wax) की प्राप्ति होती है। बल्कि रॉयल जैली नामक पदार्थ भी प्राप्त होता है जिसकी विदेशों में अत्यधिक मांग है।
विभिन्न फसलें, सब्जियां, फलों व औषिधीय पौधे हर वर्ष, फल बीज के अलावा पुष्प-रस और पराग को धारण करते हैं। लेकिन सही तरह से रख रखाव न होने के कारण ये, धूप, वर्षा व ओलों के कारण नष्ट हो जाते हैं। मधुमक्खी पालन द्वारा इनका उचित उपयोग संभव हो पाता है।
जिन फसलों व फलदार वृक्षों का परागण कीटों द्वारा सम्पन्न होता है, मधुमक्खियों की वजह से सामान्यतः परागण वाली फसलों की पैदावार में 20 से 30 प्रतिशत तक वृद्धि हो जाती है।
विभिन्न सर्वेक्षणों के आधार पर वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध किया है की मधुमक्खियाँ अगर 1 रूपए का लाभ मधुमक्खी पालक को पहुँचाती हैं, तो वह 15-20 रूपए का लाभ उन काश्तकारों व बागवानों को भी पहुँचाती हैं, जिनके खेतों या बागों में यह परागण व मधु संग्रहण हेतु पालन किया जाता हैं।
इस प्रकार से यह स्पष्ट है की ग्रामीण अर्थव्यवस्था में व्यापक परिवर्तन लाने के लिए यह आवश्यक है कि इस व्यवसाय का ग्रामीण क्षेत्रों में बड़े स्तर पर प्रचार-प्रसार किया जाए।
मधुमक्खी की पाई जाने वाली प्रजातियाँ
हमारे देश में मधुमक्खी की पांच प्रजातियाँ पाई जाती हैं –
- एपीस डोंरसेटा
- एपीस फलेरिया
- एपीस इंडिका
- एपीस मैलिफेटा
- मैलापोना ट्राईगोना
इनमें प्रथम चार प्रजातियों का पालन मधु उत्पादन हेतु किया जाता है।
मैलापोना ट्राईगोना प्रजाति की मधुमक्खी का कोई आर्थिक महत्व नहीं होता है, वह मात्र 20-30 ग्राम शहद ही एकत्रित कर पाती है।
एपीस डोंरसेटा-
यह स्थानीय क्षेत्रों में पहाड़ी मधुमक्खी के नाम से भी जानी जाती है। यह मक्खी लगभग 1200 मी. की ऊँचाई तक पायी जाती है व बड़े वृक्षों, पुरानी इमारतों इत्यादि पर ही छत्ता का निर्माण करती हैं। अपने भयानक स्वभाव व तेज डंक के कारण इसका पालना मुश्किल होता है। इसमें वर्षभर में 30-40 किलो तक शहद प्राप्त हो जाता है।
एपीस फ्लोरिया-
यह सबसे छोटे आकार की मधुमक्खी होती है व स्थानीय भाषा में छोटी या लिटिल मक्खी के नाम से जानी जाती है। यह मैदानों में झाड़ियों में, छत के कोनो इत्यादि में छत्ता बनाती है। अपनी छोटी आकृति के कारण ये केवल 200 ग्राम से 2 किलो तक शहद एकत्रित कर पाती है।
एपीस इंडिका-
यह भारतीय मूल की ही प्रजाति है व पहाड़ी व मैदानी जगहों में पाई जाती हैं। इसकी आकृति एपीस डोरसेटा व एपीस फ्लोरिया के मध्य की होती है। यह बंद घरों में, गोफओं में या छुपी हुई जगहों पर घर बनाना अधिक पसंद करती है। इस प्रजाति की मधुमक्खियों को प्रकाश नापसंद होता है। एक वर्ष में इनके छत्ते से 2-5 कि. ग्रा. तक शहद प्राप्त होता है।
एपीस मैलीफेटा-
इसे इटेलियन मधुमक्खी भी कहते हैं, यह आकार व स्वभाव में भारतीय महाद्वीपीय प्रजाति है। इसका रंग भूरा, अधिक परिश्रमी आदत होने के कारण यह पालन के लिए सर्वोत्तम प्रजाति मानी जाती है। इसमें भगछूट की आदत कम होती है व यह पराग व मधु प्राप्ति हेतु 2 से 2.5 किमी की दूरी भी तय कर लेती है। मधुमक्खी के इस वंश से वर्षभर में औसतन 50-60 किग्रा. शहद प्राप्त हो जाता है।
इटेलियन मधुमक्खी
इटेलियन मधुमक्खी पालन में प्रयुक्त मौन गृह में लगभग 40-80 हजार तक मधुमक्खियाँ होती हैं, जिनमें एक रानी मक्खी, कुछ सौ नर व शेष मधुमक्खियाँ होती हैं।
रानी मधुमक्खी Queen
यह लम्बे उदर व सुनहरे रंग की मधुमक्खी होती है जिसे आसानी से पहचाना जा सकता है। इसका जीवन काल लगभग तीन वर्ष का होता है। सम्पूर्ण मौन परिवार में एक ही रानी मक्खी होती है जो की अंडे देने का कार्य करती है। जिनकी संख्या 2500 से 3000 प्रतिदिन होती है।
यह दो प्रकार के अंडे देती है, गर्भित व अगर्भित अंडे।
इसके गर्भित अंडे से मादा व अगर्भित अंडे से नर मधुमक्खी विकसित होती है। जिसमें 15-16 दिन का समय लगता है।
नर मधुमक्खी या ड्रोंस
नर मधुमक्खी गोल, काले उदर युक्त व डंक रहित होती हैं। यह प्रजनन कार्य सम्पन्न करती है व इस काल में बहुतायत में होती है। रानी मधुमक्खी से प्रजननोप्रांत नर मधुमक्खी मर जाती है, यह नपशियत फ़्लाइट कहलाता है। इसके तीन दिन पश्चात् रानी अंडे देने का कार्य प्रारंभ कर देती है।
मादा मधुमक्खी या श्रमिक
पूर्णतया विकसित डंक वाली श्रमिक मक्खी मौनगृह के समस्त कार्यों को संचालित करती है। इनका जीवनकाल 40-45 दिन का होता है। श्रमिक मक्खी कोष से पैदा होने के तीसरे दिन से कार्य करना प्रारंभ कर देती है।
- मोम उत्पादित करना,
- रॉयल जेली श्रावित करना,
- छत्ता बनाना,
- छत्ते की सफाई करना,
- छत्ते का तापक्रम बनाए रखना,
- कोषों की सफाई करना,
- वातायन करना,
- भोजन के स्रोत की खोज करना,
- पुष्प- रस को मधु रूप में परिवर्तित कर संचित करना,
प्रवेश द्वार पर चौकीदारी करना इत्यादि कार्य मादा मधुमक्खी द्वारा किए जाते हैं।
मौन गृह
प्राकृतिक रूप से मधुमक्खी अपना छत्ता पेड़ के खोखले, दिवार के कोनों, पुराने खंडहरों आदि में लगाती हैं। इनमें शहद प्राप्ति हेतु इन्हें काटकर निचोड़ा जाता है, परन्तु इस क्रियाविधि में अंडा लार्वा व प्यूपा आदि का रस भी शहद में मिल जाता है साथ ही मौनवंश भी नष्ट हो जाता है।
प्राचीन काल में जब मधुमक्खी पालन व्यवसाय का तकनीकी विकास नहीं हुआ था तब यही प्रक्रिया शहद प्राप्ति हेतु अपनाई जाती थी। इससे बचने के लिए वैज्ञानिकों ने पूर्ण अध्ययन व विभिन्न शोधों के उपरांत मधुमक्खी पालन हेतु मौनगृह व मधु निष्कासन यंत्र का आविष्कार किया।
मौनगृह लकड़ी का एक विशेष प्रकार से बना बक्सा होता है। यह मधुमक्खी पालन में सबसे महत्वपूर्ण उपकरण होता है। मौनगृह का मधुमक्खी पालन 1 सबसे निचला भाग तलपट कहलाता है। यह लगभग 381× 2 मि.मी. लम्बे, 266× 2 मि.मी. चौड़ाई व 50 मि. मी. ऊँचाई वाले लकड़ी के पट्टे का बना होता है। तलपट के ठीक ऊपर वाला भाग शिशु खंड कहलाता है। इसकी बाहरी माप 286 × 2 मि.मी. लम्बी, 266× 2 मि.मी. चौड़ी व 50 मि.मी. ऊँची होती है। शिशु खंड की आन्तरिक माप 240 मि.मी. लम्बी, 320 मी. चौड़ी व 173 मि. मी. ऊँची होती है।
शिशु खंड में अंडा, लार्वा, प्यूपा पाया जाता है। मौन वंश के तीनों सदस्य श्रमिक, रानी व नर रहते हैं। मौन गृह के दस भाग में 10 फ्रेम होते हैं, श्रमिक मधुमक्खी द्वारा शहद का भंडारण इसी कक्ष में किया जाता है। इसके अलावा मौनगृह में दो ढक्कन होते हैं – आन्तरिक व बाह्य ढक्कन।
आन्तरिक ढक्कन एक पट्टी जैसी आकृति का होता है व इसके बिल्कुल मध्य में एक छिद्र होता है। जब मधुमक्खियाँ शिशु खंड में हो तो आन्तरिक ढक्कन शिशुखंड पर रखकर फिर बाह्य ढक्कन ढंका जाता है। यह ढक्कन के ऊपर एक टिन की चादर लगी रहती है जो वर्षा ऋतू में पानी के अंदर प्रवेश से मौनगृह की रक्षा करती है। मौनगृह को लोहे के एक चौकोर स्टैंड पर स्थापित किया जाता है। स्टैंड के चारों पायों के नीचे पानी से भरी प्यालियाँ रखी जाती हैं। जिसके फलस्वरूप चीटियाँ मौगगृह में प्रवेश नहीं कर पाती हैं।
मधुमक्खी पालन में उपयोग होने वाले सहायक उपकरण
यहाँ मधुमक्खी पालन में प्रयुक्त अन्य सहायक उपकरणों के बारे में अधिक जानकारी दी गयी है।
1.मुंह रक्षक जाली
इसके प्रयोग से मौन पालक का चेहरा पूर्णत: ढका रहता है। मौनवंश का निरीक्षण, शहद का निष्कासन तथा मौनवंश वृद्धि आदि कार्यों को करते समय श्रमिक के डंक मारने का खतरा बना रहता है, इससे बचाव के लिए इस जाली का प्रयोग किया जाता है।
2.मौमी छत्तादार
यह प्राकृतिक मोम से बना हुआ पट्टीनुमा आकृति का होता है। इसका उपयोग मधुमक्खी पालन में होता है। मधुमक्खी पालन में जब नए छत्तों का निर्माण कराया जाता है तो इसे चौखट में बनी झिरी में फिट करके तार का आधार दे देते हैं। इस पर बने छत्ते अधिक मजबूत होते हैं व मधु निष्कासन के समय टूटते नहीं हैं।
मौमी छत्तादार में प्रयुक्त मोम का शुद्ध होना भी अत्यावश्यक है, अन्यथा मधुमक्खियाँ उस पर सही प्रकार से छत्ते नहीं बनाती हैं। इसका प्रयोग साफ पानी से धोकर ही करना चाहिए। प्रयोग न होने की अवस्था में छ्त्ताधारों को कागज में लपेटकर सुरक्षित रख देना चाहिए।
3.कृत्रिम भोजन पात्र
यह आयताकार लोहे का बना हुआ पात्र होता है सांयकाल पराग व मकरंद प्रचुर मात्रा में न मिलने की अवस्था में छ्त्ताधारों को कागज में लपेटकर सुरक्षित रख देना चाहिए।
4.दस्ताना
दस्ताना कपड़े या रबड़ दोनों के बने हो सकते हैं। यह हाथ को कोहनी तक ढके रखते हैं ताकि मधुमक्खियों के डंक से हाथों पर खतरा न हो।
5. बकछूट थैला
यह कपड़े का बना एक विशेष प्रकार का थैला होता है, जिसका एक सिरा बंद होता है व दूसरा रस्सी द्वारा खींचने पर बंद हो जाता है। मौनवंश के बकछूट के समय मक्खियों के समूह को पकड़ने के लिए उसे इस थैले के अंदर की ओर करके रानी सहित समस्त समूह को झाड़कर उल्टा करके नीचे की ओर मुंह को रस्सी कसकर बंद कर देते हैं, जिससे बकछूट समूह इस थैले में प्रवेश कर जाता है और पुन: इसे मौनगृह में बसा देते हैं। मौनगृह उपलब्ध न होने की दशा बकछूट को एक दो दिन तक इस थैले में भी रखा जा सकता है।
6.रानी मक्खी गेट
इसे Queen's Gate भी कहा जाता है। इसे वर्षा ऋतू में रानी मक्खी को भागने से रोकने के लिए मौनगृह के द्वार पर लगा देते हैं।इससे श्रमिक मक्खियों को आना - जाना तो मौन गृह में जारी रहता है परंतु रानी मक्खी पर रोक लग जाती है।
7.धुंवाधार
यह एक टीन का बना हुआ डिब्बा होता है। इसके अंदर एक टाट या कपड़े का टूकड़ा रखकर जलाया जाता है, जिसके एक कोने से धुंवा निकलता है। जब मधुमक्खियाँ काबू से बाहर होती हैं तो धुवांधार द्वारा उन पर धुवाँ छोड़ा जाता है जिसे मधुमक्खियाँ शांत हो जाती हैं।
8.शहद निष्कासन यंत्र
जस्ती चादर से बने ड्रमनुमा आकृति का यह यंत्र मधुमक्खी पालन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसके बिल्कुल मध्य में एक छड़ व जाली लगी होती है व ऊपर की ओर एक हैंडल को मध्य से घुमाने पर जाली सहित छड़ वृत्ताकार परिधि में घूमती है। शहद निष्कासन के लिए मधुखंड की चौखट को जाली के अंदर रखकर घुमाते हैं, जिससे समस्त मधु चौखट से बाहर आ जाता है। चौखटों के मध्य भाग में पराग व मकरंद होता है।
पोषण प्रबंध Feeders
मधुमक्खी पालन व्यवसाय प्रारम्भ करने से पहले यह आवश्यक है, पोषण प्रबंधन के बारे में जान लिया जाए जो की मधुमक्खी पालन का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। मधुमक्खियों के पोषण पराग व मकरंद द्वारा होता है, जो ये विभीन्न फूलों से प्राप्त करती हैं। अत: मधुमक्खी पालक को चाहिए कि वो व्यवसाय आरम्भ करने से पूर्व ये सुनिश्चित कर ले किस माह में किस वनस्पति या फसल से पूरे वर्षभर पराग व मकरंद प्राप्त होते रहेंगे।
इमली, नीमसफेदा कचनार, रोहिड़ा लिसोड़ा, अडूसा, रीठा आदि वृक्षों से, नींबू, अमरुद, आम अंगूर,अनार आदि फलों की फसलों से, मिर्च, बैंगन, टमाटर, चना मेथी, लौकी, करेला, तुराई ककड़ी, कटेला आदि सब्जियों से, सरसों कपास, सूरजमुखी, तारामीरा आदि फसलों से पराग व मकरंद मधुमक्खियों को प्रचुर मात्रा में मिल जाता है। पराग व मकरंद प्राप्ति का मासिक योजना प्रारूप तैयार करने से मौनगृहों के स्थानांतरण की सूविधा हो जाती है।
पराग व मकरंद प्राकृतिक रूप से प्राप्त नहीं होने की दशा में मधुमक्खियों को कृत्रिम भोजन की भी व्यवस्था की जाती है। कृत्रिम भोजन के रूप में उन्हें चीनी का घोल दिया जाता है। यह घोल एक पात्र में लेकर उसे मौनगृह में रख देते हैं। इसके अलावा मधुमक्खियों का कृत्रिम भोजन उड़द से भी बनाया जा सकता हैं। इसे सप्लिमेंट कहते हैं।
इसे बनाने के लिए लगभग एक सौ ग्राम साबुत उड़द अंकुरित करके उसे पीसा जाता है। इस पीसी हुई दाल में दो चम्मच मिलाकर एक समांग मिश्रण तैयार कर लेते हैं। यह मिश्रण भोजन के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। इससे मधुमक्खियों को थोड़े समय तक फूलों से प्राप्त होने वाला भोजन हो जाता है।
मधुमक्खी पालन के लिए स्थान का निर्धारण के लिए जरूरी दिशा निर्देश
- मधुमक्खी पालन के लिए ऐसे स्थान का चयन आवश्यक है जिसके चारों तरफ 2 से 3 किमी. के क्षेत्र में बहुत सारे पेड़-पौधे मौजूद हों। जिनसे पराग व मकरंद अधिक समय तक उपलब्ध हो सके।
- बॉक्स स्थापना हेतु स्थान समतल व पानी का उचित निकास होना चाहिए।
- स्थान के आसपास का बाग़ या फलौद्यान अधिक घना नहीं होना चाहिए ताकि गर्मी के मौसम में हवा का आवागमन सुचारू हो सके।
- जहाँ मौनगृह स्थापित होना है, वह स्थान छायादार होना चाहिए।
- वह स्थान दीमक व चीटियों से नियंतित्र होना आवश्यक है।
- दो मौनगृह के मध्य चार से पांच मीटर का फासला होना आवश्यक है, उन्हें पंक्ति में नहीं लगाकर बिखरे रूप में लगाना चाहिए।
- एक स्थान पर 50 से 100 मौनगृह स्थापित किये जा सकते हैं।
- हर बॉक्स के सामने पहचान के लिए कोई खास पेड़ या निशानी लगनी चाहिए ताकि मधुमक्खी अपने ही मौनगृह में प्रवेश करें।
- मौनगृह को मोमी पतंगे के प्रकोप से बचाने के उपाय किए जाने चाहिए।
- निरीक्षण के सयम यह ध्यान देना चाहिए कि मौनगृह में नमी तो नहीं है अन्यथा उसे धुप दिखाकर सुखा देना चाहिए।
मधुमक्खी पालन व मौनगृह प्रबंध
यहाँ आपको मधुमक्खी पालन व मौनगृह प्रबंध के ऊपर विस्तृत जानकारी उपलब्ध है।
मौन प्रबंध
मौनगृह का निरीक्षण हर 9-10 दिनों के पश्चात करना अति आवश्यक है। निरीक्षण के दौरान मुंह रक्षक जाली व दास्तानी का प्रयोग किया जाता है। उस समय हल्का धुआं भी करते हैं। जिसमें मधुमक्खियाँ, शांत बनी रहती हैं। इसमें मौनगृह के दोनों भागों का पृथक – पृथक निरीक्षण किया जाता है।
मधुमक्खी निरीक्षण
मधुखंड के निरीक्षण के समय यह देखते हैं कि किन- किन फ्रेम (चौखटों) में शहद है। जिन चौखटों में शहद 75-80 प्रतिशत तक जमा है, उस फ्रेम को निकाल कर उसकी मधुमक्खियाँ खंड में ही झाड़ देते हैं। इसके पश्चात जमा शहद को चाकू से खरोंच कर मधुनिष्कासन मशीन द्वारा परिशोषित मधु प्राप्त करते हैं व खाली फ्रेम को पुन: मधुखण्ड में स्थापित कर देते हैं।
शिशुखंड निरीक्षण
शिशुखंड निरीक्षण में सर्वप्रथम रानी मक्खी को पहचान कर उसकी अवस्था का जायजा लिया जाता है। यदि रानी बूढ़ी हो गई हो या चोटिल हो तो उसके स्थान पर नई रानी मक्खी प्रवेश कराई जाती है। नर मधुमक्खी का रंग काला होता है, यह केवल प्रजनन के काम आती है इसलिए इनके निरिक्षण की विशेष आवश्यकता नहीं होती है।
स्थान परिवर्तन व पेकिंग निरीक्षण
फसल चक्र में परिवर्तन के साथ मधुमक्खियों को पराग व मकरंद का आभाव होने लगता है। इस स्थिति में मौनगृहों का स्थानांतरण ऐसे स्थानों पर किया जाता है जहाँ विभिन्न फूलों व फलों वाली फसलें प्रचुरता में उपलब्ध हों।
स्थानांतरण हेतु पैकिंग कार्य के शाम के समय किया जाता है, जिससे सभी श्रमिक मक्खियाँ अपने मौनगृह में वापस आ जाएँ।
निरीक्षण के दौरान यह देखा जाना चाहिए कि वहाँ पराग व मकरंद उपयुक्त मात्रा में है या नहीं, इसमें कमी होने पर चीनी व घोल प्रदान किया जाता है।
पर्याप्त मात्रा में पराग व मकरंद प्राप्त होने पर मौनवंश में भी वृद्धि अधिक होती है। इस पराक्र हुई वंश वृद्धि की व्यवस्था दो प्रकार से की जाती है। मौनवंश से नए छत्ते बनवाकर व मौनवंश का विभाजन करके।
शहद निष्कासन
मधुखंड में स्थित चौखटों में जब 75 से 80 प्रतिशत तक तक शहद जमा हो जाए तो उस शहद का निष्कासन किया जाता है। इसके लिए सबसे पहले चौखटों से मधुमक्खियाँ झाड़कर मधु खंड में डाल देते हैं इसके पश्चात चाकू से या तेज गर्म पानी डालकर छत्ते से मोम की ऊपरी परत उतारते हैं। फिर इस चौखट को शहद निष्कासन यंत्र में रखकर हैंडिल द्वारा घुमाते हैं, इसमें अपकेन्द्रिय बल द्वारा शहद बाहर निकल जाता है व छत्ते की संरचना को भी कोई नुकसान नहीं पहूंचता।
इस चौखट को पुन: मधुखंड में स्थापित कर दिया जाता है एवं मधुमक्खियाँ छत्ते के टूटे हुए भागों को ठीक करके पुन: शहद भरना प्रारंभ कर देती हैं। इस प्रकार प्राप्त शहद को मशीन से निकाल कर एक टंकी में 48-50 घंटे तक डाल देते हैं, ऐसा करने से शहद में मिले हवा के बूलबूले, मोम आदि शहद की ऊपरी सतह पर व अन्य मैली वस्तुएँ नीचे सतह पर बह जाती है।
शहद को बारीक़ कपड़े से छानकर व प्रोसेसिंग के उपरांत स्वच्छ व सूखी बोतलों में भरकर बाजार में बेचा जा सकता है। इस प्रकार न तो छत्ते और न ही लार्वा, प्यूपा आदि नष्ट होते हैं और शहद भी शुद्ध प्राप्त होता है।
मधुमक्खी पालन में व्याधियाँ
मधुमक्खी पालन में आने वाली व्याधियाँ की जानकारी यहाँ दी गयी है।
माइट
यह चार पैरों वाला, मधुमक्खी पर परजीवी कीट है। इससे बचाव के लिए संक्रमण की स्थिति 10-15 दिन के अन्तराल पर सल्फर चूर्ण का छिड़काव चौखट की लकड़ी पर व प्रवेश द्वार पर करना चाहिए।
सैक ब्रूड वायरस
यह एक वायरस जनित व्याधि है। इटेलियन मधुमक्खियों में इस व्याधि के लिए प्रतिरोधक क्षमता अन्य से अधिक होती है।
बगछूट
मधुमक्खियों को अपने आवास से बड़ा लगाव होता है परंतु कई बार इनके सम्मुख ऐसी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं कि इन्हें अपना आवास छोड़ना पड़ता है। इस स्थिति में बगछूट थैले में पकड़ का पुन: मौनगृह में स्थापित कर देते हैं।
मोमी पतंगा
यह मधुमक्खी का शत्रु होता है। निरीक्षण के दौरान इसे मारकर नष्ट का देना चाहिए।
निष्कर्ष
दोस्तों यदि आप ग्रामीण क्षेत्रों से हैं तथा अपने क्षेत्र में ही एक अच्छा रोजगार खोज रहे हैं तो आप मधुमक्खी पालन कर सकतें हैं। हमारी यह पोस्ट Bee Farming कैसे करें? मधुमक्खी पालन की सम्पूर्ण जानकारी जानें हिन्दी में आपके काम आ सकती हैं, या फिर आप इसके प्रशिक्षण के लिए सरकार द्वारा योजनाएं बनाई गई हैं। जिनसे आप इस व्यवसाय के बारे में प्रशिक्षण ले कर मधुमक्खी पालन की शुरुआत कर सकतें है।
तो दोस्तो यह थी Bee Farming कैसे करें? मधुमक्खी पालन की सम्पूर्ण जानकारी जानें हिन्दी में। आशा है कि आपको यह जानकारी पसंद आई होगी। तथा आपको कुछ नया जानने और सीखने को मिला होगी।
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